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भारत की जैव-अर्थव्यवस्था पिछले 10 वर्षों में 13 गुना बढ़ी: डॉ. जितेंद्र सिंह

नई दिल्ली में 10,000 जीनोम सीक्वेंसिंग के जीनोमइंडिया फ्लैगशिप कार्यक्रम की घोषणा करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत की जैव-अर्थव्यवस्था पिछले 10 वर्षों में 13 गुना बढ़ गई है, यह 2014 के 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2024 में 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई है.

भारत की जैव-अर्थव्यवस्था पिछले 10 वर्षों में 13 गुना बढ़ी: डॉ. जितेंद्र सिंह

Wednesday February 28, 2024 , 5 min Read

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा है कि जैव-अर्थव्यवस्था और अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था भारत की भविष्य की विकास गाथा का नेतृत्व करने जा रहे हैं, भारत की आर्थिक वृद्धि पहले से ही आज विश्व में 6% से अधिक है.

नई दिल्ली में 10,000 जीनोम सीक्वेंसिंग करने के जीनोमइंडिया फ्लैगशिप कार्यक्रम की घोषणा करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत की जैव-अर्थव्यवस्था पिछले 10 वर्षों में 13 गुना बढ़ गई है, यह 2014 के 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2024 में 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई है. उन्होंने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में पिछले 10 वर्षों में तेजी से वृद्धि देखी गई है और भारत को अब विश्व के शीर्ष 12 जैव-निर्माताओं में सम्मिलित किया जा रहा है.

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, ऐसी कई सफलता की कहानियां हैं जिन्होंने भारत की जैव-अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय योगदान दिया है जैसे मिशन कोविड सुरक्षा, भारतीय जैविक डेटा केंद्र जो क्षेत्रीय जैव प्रौद्योगिकी केंद्र, फरीदाबाद और भारतीय एसएआरएस सीओवी-2 जीनोमिक कंसोर्टियम (INSACOG) में स्थापित जीवन विज्ञान डेटा का पहला भंडार है.

मंत्री ने कहा कि 2024-25 के अंतरिम बजट में, सरकार ने हरित विकास को बढ़ावा देने के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) द्वारा कार्यान्वित की जाने वाली जैव-विनिर्माण और जैव-फाउंड्री की नई योजना की घोषणा की है और नया कार्यक्रम बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर, बायो-प्लास्टिक, बायो-फार्मास्यूटिकल्स और बायो-एग्री-इनपुट जैसे विकल्प पर्यावरण अनुकूल प्रदान करेगा. उन्होंने कहा कि यह योजना आज के उपभोगात्मक विनिर्माण प्रतिमान को पुनर्योजी सिद्धांतों पर आधारित प्रतिमान बदलने में भी मदद करेगी.

India's bio-economy grew 13 times in the last 10 years: Dr. Jitendra Singh

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गगनयान मिशन में हुई प्रगति की गहन समीक्षा करने और आज 4 अंतरिक्ष यात्रियों को एस्ट्रोनॉट विंग्स प्रदान करने का उल्लेख करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जैव-अर्थव्यवस्था की तरह ही भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था भी नए द्वार खोल रही है.

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का वर्तमान आकार लगभग 8.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का लगभग 2-3%) का अनुमानित है और सम्भावना है कि भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 के कार्यान्वयन के साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था $44 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो सकती है. इसे वर्ष 2033 तक प्राप्त किया जाएगा.

जीनोमइंडिया परियोजना पर वापस आते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने इसे भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बताया, क्योंकि इससे देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को बड़ा बढ़ावा मिलने के अलावा आनुवंशिक आधारित उपचारों को भी बढ़ावा मिलेगा.

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जीनोम अध्ययन या सीक्वेंसिंग विश्व भर में चिकित्सीय और रोगनिरोधी रूप से भविष्य की स्वास्थ्य देखभाल रणनीतियों को निर्धारित करने जा रहा है. उन्होंने कहा कि, भारतीय समस्याओं का भारतीय समाधान खोजने की नितांत आवश्यक है क्योंकि भारत अब वैज्ञानिक रूप से उन्नत देशों के समूह में अग्रणी राष्ट्र के रूप में उभर रहा है.

डॉ. जितेंद्र सिंह ने देश भर के सभी प्रमुख भाषाई और सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले 99 समुदायों के 10,000 स्वस्थ व्यक्तियों के पूरे जीनोम को अनुक्रमित करके वैविध्यपूर्ण भारतीय जनसंख्या की आनुवंशिक विविधताओं की पहचान करने और सूचीबद्ध करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) की सराहना की.

मंत्री ने कहा कि भारत की 1.3 अरब की जनसंख्या 4,600 से अधिक विविध जनसंख्या समूहों से मिलकर बनी है और जिनमें से कई अंतर्विवाही (निकट जातीय समूहों में विवाह) हैं तथा इन समूहों में अद्वितीय आनुवंशिक विविधताएं एवं रोग पैदा करने वाले उत्परिवर्तन (म्यूटेशन्स) हैं जिनकी तुलना अन्य पश्चिमी विश्व जनसंख्या से नहीं की जा सकती है. उन्होंने कहा कि इसलिए समय की मांग है कि इन अद्वितीय आनुवंशिक विभिन्नताओं (वेरिएन्ट्स) के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए भारतीय संदर्भ जीनोम का एक डेटाबेस बनाया जाए और भारतीय जनसंख्या के लिए वैयक्तिकृत औषधियां बनाने के लिए इस जानकारी का उपयोग किया जाए.

अपने संबोधन में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के सचिव डॉ. राजेश गोखले ने कहा कि विभाग ने पिछले दस वर्षों में जैव प्रौद्योगिकी के विभिन्न अत्याधुनिक क्षेत्रों में कदम रखा है. उन्होंने कहा कि डीबीटी ने एक मजबूत विशिष्ट जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र बनाया है और वह देश भर में एक ठोस अनुसंधान और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का पोषण करके अनुसंधान एवं विकास एवं तकनीकी विकास को बढ़ावा दे रहा है.

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विभाग ने नीतिगत सुधारों के माध्यम से जैव प्रौद्योगिकी के सभी विविध पहलुओं को सुदृढ़ करने में योगदान दिया है और सबसे महत्वपूर्ण इसके 14 स्वायत्त संस्थानों के संसाधनों को मिलाकर शीर्ष संगठन- जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और नवाचार परिषद (बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च एंड इनोवेशन काउंसिल –BRIC) की स्थापना है. "डीबीटी-एआई के पुनर्गठन" का वर्तमान प्रयास आत्मनिर्भर भारत, मेक-इन-इंडिया और विज्ञान से विकास के राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सार्वजनिक वित्त पोषित अनुसंधान से सामाजिक-आर्थिक परिणामों को अधिकतम करने की दिशा में है.

अपने संबोधन में, डीबीटी की सलाहकार डॉ. सुचिता निनावे ने कहा कि परियोजना के अंतर्गत बनाए गए "भारतीय जनसंख्या के लिए संदर्भ जीनोम" से विभिन्न जातीय समूहों के लिए आवश्यक व्याधियों की प्रकृति और विशिष्ट हस्तक्षेपों की बेहतर समझ पैदा होगी. जीनोमइंडिया भारत को जीनोम अनुसंधान के विश्व मानचित्र पर स्थापित करेगा और सामूहिक रूप से विश्व भर के शोधकर्ताओं के लिए भविष्य में बड़े पैमाने पर मानव आनुवंशिक अध्ययन (ह्यूमन जेनेटिक स्टडीज) की सुविधा प्रदान करेगा.

जीनोमइंडिया के संयुक्त समन्वयकों प्रो वाई नरहरि और डॉ के थंगराज ने अपनी प्रस्तुतियों में कहा कि अनुक्रमण और एक संदर्भ जीनोम स्थापित करने के व्यापक पैमाने से परे, मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र में 20,000 रक्त नमूनों को रखने वाले एक बायोबैंक का निर्माण, डेटा संग्रह के साथ मिलकर भारतीय जैविक डेटा केंद्र पारदर्शिता, सहयोग और भविष्य के अनुसंधान प्रयासों के लिए परियोजना की प्रतिबद्धता का उदाहरण देता है. ऐसे डेटा को भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा क्षेत्रीय जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (आरसीबी), फ़रीदाबाद में स्थापित भारतीय जैविक डेटा केंद्र (इंडियन बायोलॉजिकल डाटा सेंटर-IBDC) में संग्रहीत किया जा रहा है.

जीनोमइंडिया 20 राष्ट्रीय संस्थानों का एक संघ (कंसोर्टियम) है जो भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा सहयोगात्मक, राष्ट्रव्यापी, मिशन-उन्मुख वैज्ञानिक भागीदारी और दूरदर्शी वित्त पोषण के महत्व का उदाहरण प्रस्तुत करता है.